कल्किराज
From जैनकोष
पाटलिपुत्र नगर में राजा शिशुपाल और उसकी रानी पृथिवीसुंदरी का चतुर्मुख नामक पुत्र । दुःषमा काल के एक हजार वर्ष बीत जाने पर मघा (माघ) संवत्सर में यह उत्पन्न होगा तथा इस नाम से प्रसिद्ध होगा । इसकी उत्कृष्ट आयु सत्तर वर्ष तथा राज्यकाल चालीस वर्ष होगा । यह पाखंडी साधुओं के 96 वर्गों को अपने अधीन करने वाला होगा । यह निर्ग्रंथ साधुओं के आहार का प्रथम ग्रास करके रूप में लेना चाहेगा । इसकी इस प्रवृत्ति से असंतुष्ट होकर कोई सम्यग्दृष्टि असुर इसे मार डालेगा और यह मरकर रत्नप्रभा नामक प्रथम पृथिवी में जायेगा, वहाँ एक सागर प्रमाण इसकी आयु होगी । इसका पुत्र अजितंजय अपनी पत्नी वालना के साथ इसी असुर की शरण मे पहुँचेगा और सम्यग्दर्शन स्वीकार करेगा । इस कल्की के बाद प्रति एक-एक हजार वर्ष के पश्चात् बीस कल्की राजा और होंगे । अंतिम (इक्कीसवाँ) कल्की जलमंथन होगा । महापुराण 76. 397-431, हरिवंशपुराण - 60.492-494