कांचन गिरि
From जैनकोष
विदेह के उत्तरकुरु व देवकुरु में सीता व सीतोदा नदी के दोनों तटों पर पचास-पचास अथवा नदी के भीतर स्थित दस-दस द्रहों के दोनों ओर पाँच-पाँच करके, कंचन वर्णवाले कूटाकार सौ-सौ पर्वत हैं। अर्थात् देवकुरु व उत्तरकुरु में पृथक्-पृथक् सौ-सौ हैं।–देखें लोक - 3.8।