कुंभक
From जैनकोष
ज्ञानार्णव/29/5 निरुणद्धि स्थिरीकृत्य श्वसनं नाभिपंकजे। कुंभवन्निर्भर: सोऽयं कुंभक: परिकीर्त्तित:।पूरक पवन को स्थिर करके नाभि कमल में जैसे घड़े को भरैं तैसें रोकैं (थांभै) नाभि से अन्य जगह चलने न दें सो कुंभक कहा है।
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