कुभोगभूमि
From जैनकोष
लवण समुद्र के दोनों तटों पर 24-24 अंतर्द्वीप हैं अर्थात् 4 दिशाओं के 4 द्वीप, चार विदिशाओं के चार द्वीप, दिशा-विदिशा के आठ अन्तरालों के 8 द्वीप, हिमवान पर्वत और शिखरी पर्वत के दोनों तटों के 4 और भरत, ऐरावत के दोनों विजयार्धों के दोनों तटों के 4 इस प्रकार 24 हुए । ये 24 अंतर्द्वीप लवण-समुद्र के एकतटवर्ती हैं । अपर-तट के भी 24 अंतर्द्वीप हैं | इस प्रकार लवणसमुद्र संबंधी 48 अंतर्द्वीप हैं|
इसी प्रकार कालोदधि के उभय तट के 48 हैं| सभी मिलाकर 96 अंतर्द्वीप कहलाते हैं।
इनमें रहने वाले मनुष्यों के सींग, पूंछ आदि होते हैं अत: इन्हें ही कुभोगभूमि कहते हैं। इन द्वीपों के मनुष्य कुभोगभूमियां या अंतर्द्वीपज कहलाते हैं।
तिलोयपण्णत्ति/4/2954 छब्बीसदुदेक्कसंयप्पमाणभोगक्खिदीण सुहमेक्कं। कम्मखिदीसु णराणं हवेदि सोक्खं च दुक्खं च।2954। = मनुष्यों को एक सौ छब्बीस भोगभूमियों में (30 भोगभूमियों और 96 कुभोगभूमियों में) केवल सुख, और कर्मभूमियों में सुख एवं दुःख दोनों ही होते हैं।
विशेष जानने के लिए देखें अंतर्द्वीपज म्लेच्छ ।