केशावाप क्रिया
From जैनकोष
गृहस्थ की त्रेपन गर्भान्वय क्रियाओं में बारहवीं क्रिया-किसी शुभ दिन देव और गुरु की पूजा करके शिशु का क्षौरकर्म कराना । इसमें पूजन के पश्चात् शिशु के बाल गंधोदक से गीले करके उन पर पूजा के शेष अक्षत रखे जाते हैं । इसके बाद चोटी सहित (अपने कुल की पद्धति के अनुसार) मुंडन कराया जाता है । मुंडन के बाद शिशु का स्नपन होता है । फिर उसका अलंकरण किया जाता है । शिशु द्वारा मुनियों अथवा साधुओं को नमन कराया नाता है । इसके पश्चात् बंधु जन शिशु को आशीर्वाद देते हैं । इस मांगलिक कार्य ने संबंधीजन हर्ष पूर्वक भाग लेते हैं ।
महापुराण 38.56, 98-101
देखें संस्कार - 2।