क्रियादृष्टि
From जैनकोष
दृष्टिप्रवाद नामक बारहवां अंग में निर्दिष्ट तीन सौ त्रेसठ दृष्टियों के चार विभागों में एक विभाग । इसके एक सौ अस्सी भेद इस प्रकार होते हैं― नियति, स्वभाव, काल, दैव और पौरुष इन पाँच को स्वत: परत: तथा नित्य और अनित्य से गुणित करने से बीस भेद तथा जीव आदि नौ पदार्थों को उक्त बीस भेदों से गुणित करने पर एक सौ अस्सी भेद । हरिवंशपुराण - 10.46-51