गर्भ
From जैनकोष
तत्त्वार्थसूत्र/2/33
जरायुजांडजपोतानां गर्भ:।33।
=जरायुज, अंडज व पोत जीवों का गर्भजन्म होता है।
सर्वार्थसिद्धि/2/31/187/4
स्त्रिया उदरे शुक्रशोणितयोर्गरणं मिश्रणं गर्भ:। मात्रुपभुक्ताहारगरणाद्वा गर्भ:।
=स्त्री के उदर में शुक्र और शोणित के परस्पर गरण अर्थात् मिश्रण को गर्भ कहते हैं। अथवा माता के द्वारा उपभुक्त आहार के गरण होने को गर्भ कहते हैं।
( राजवार्तिक/2/31/2-3/140/25 ),
गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/83/205/1
जायमानजीवेन शुक्रशोणितरूपपिंडस्य गरणं–शरीरतया उपादानं गर्भ:।
=माता का रुधिर और पिता का वीर्यरूप पुद्गल का शरीररूप ग्रहणकरि जीव का उपजना सो गर्भ जन्म है।