गर्हा
From जैनकोष
( समयसार / तात्पर्यवृत्ति/306 )–गुरुसाक्षिदोषप्रकटनं गर्हा।=गुरु के समक्ष अपने दोष प्रगट करना गर्हा है। पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/474 गर्हणं तत्परित्याग: पंचगुर्वात्मसाक्षिक:। निष्प्रमादतया नून शक्तित: कर्महानये।474।=निश्चय से प्रमाद रहित होकर अपनी शक्ति के अनुसार उन कर्मों के क्षय के लिए जो पंचपरमेष्ठी के सामने आत्मसाक्षिपूर्वक उन रागादि भावों का त्याग है वह गर्हा कहलाती है।