गृहांग
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एक प्रकार के कल्पवृक्ष । ये भोगभूमि में आवश्यकतानुसार राजमहल, मंडप, सभागृह, चित्रमाला, नृत्यशीला आदि अनेक प्रकार के भवनों का निर्माण करते हैं । महापुराण 3. 39-40, 9.35-36,44, हरिवंशपुराण - 7.80, वीरवर्द्धमान चरित्र 18,91-92