ग्रन्थ:चारित्रपाहुड़ गाथा 19
From जैनकोष
एए तिण्णि वि भावा हवंति जीवस्स मोहरहियस्स ।
णियगुणमाराहंतो अचिरेण य कम्म परिहरइ ॥१९॥
एते त्रयोऽपि भावा: भवन्ति जीवस्य मोहरहितस्य ।
निजगुणमाराधयन् अचिरेण च कर्म परिहरति ॥१९॥
आगे कहते हैं कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र तीन भाव मोहरहित जीव के होते हैं, इनका आचरण करता हुआ शीघ्र मोक्ष पाता है -
अर्थ - ये पूर्वोक्त सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र तीन भाव हैं, ये निश्चय से मोह अर्थात् मिथ्यात्व रहित जीव के होते हैं, तब यह जीव अपना निजगुण जो शुद्ध दर्शन ज्ञानमयी चेतना की आराधना करता हुआ थोड़े ही काल में कर्म का नाश करता है ।
भावार्थ - निजगुण के ध्यान से शीघ्र ही केवलज्ञान उत्पन्न करके मोक्ष पाता है ॥१९॥