ग्रन्थ:चारित्रपाहुड़ गाथा 28
From जैनकोष
पंचेंदियसंवरणं पंच वया पंचविंसकिरियासु ।
पंच समिदि तय गुत्ती संजमचरणं णिरायारं ॥२८॥
पञ्चेन्द्रियसंवरणं पञ्च व्रता: पञ्चविंशतिक्रियासु ।
पञ्च समितय: तिस्र: गुप्तय: संयमचरणं निरागारम् ॥२८॥
आगे यतिधर्म की सामग्री कहते हैं -
अर्थ - पाँच इन्द्रियों का संवर, पाँच व्रत - ये पच्चीस क्रिया के सद्भाव होने पर होते हैं, पाँच समिति और तीन गुप्ति ऐसे निरागार संयमचरण चारित्र होता है ॥२८॥