ग्रन्थ:चारित्रपाहुड़ गाथा 30
From जैनकोष
हिंसाविरइ अहिंसा असच्चविरई अदत्तविरई य ।
तुरियं अबंभविरई पंचम संगम्मि विरई य ॥३०॥
हिंसाविरतिरहिंसा असत्यविरति: अदत्तविरतिश्च ।
तुर्यं अब्रह्मविरति: पञ्चमं सङ्गे विरति: च ॥३०॥
आगे पाँच व्रतों का स्वरूप कहते हैं -
अर्थ - प्रथम तो हिंसा से विरति अहिंसा है, दूसरा असत्यविरति है, तीसरा अदत्तविरति है, चौथा अब्रह्मविरति है और पाँचवाँ परिग्रहविरति है ।
भावार्थ - इन पाँच पापों का सर्वथा त्याग जिनमें होता है, वे पाँच महाव्रत कहलाते हैं ।