ग्रन्थ:चारित्रपाहुड़ गाथा 40
From जैनकोष
दंसणणाणचरित्तं तिण्णि वि जाणेह परमसद्धाए ।
जं जाणिऊण जोई अइरेण लहंति णिव्वाणं ॥४०॥
दर्शनज्ञानचरित्रं त्रीण्यपि जानीहि परमश्रद्धया ।
यत् ज्ञात्वा योगिन: अचिरेण लभन्ते निर्वाणम् ॥४०॥
आगे इसप्रकार मोक्षमार्ग को जानकर श्रद्धा सहित इसमें प्रवृत्ति करता है, वह शीघ्र ही मोक्ष को प्राप्त करता है, इसप्रकार कहते हैं -
अर्थ - हे भव्य ! तू दर्शन-ज्ञान-चारित्र इन तीनों को परमश्रद्धा से जान, जिसको जानकर योगी मुनि थोड़े ही काल में निर्वाण को प्राप्त करता है ।
भावार्थ - सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र त्रयात्मक मोक्षमार्ग है, इसको श्रद्धापूर्वक जानने का उपदेश है, क्योंकि इसको जानने से मुनियों को मोक्ष की प्राप्ति होती है ॥४०॥