ग्रन्थ:चारित्रपाहुड़ देशभाषा वचनिका समाप्त
From जैनकोष
छप्पय
चारित दोय प्रकार देव जिनवर ने भाख्या ।
समकित संयम चरण ज्ञानपूरव तिस राख्या ॥
जे नर सरधावान याहि धारैं विधि सेती ।
निश्चय अर व्यवहार रीति आगम में जेती ॥
(दोहा)
जिनभाषित चारित्रकूं जे पालैं मुनिराज ।
तिनि के चरण नमूं सदा पाऊँ तिनि गुणसाज ॥२॥
जब जगधन्धा सब मेटि कैं निजस्वरूप में थिर रहै ।
तब अष्टकर्मकूं नाशि कै अविनाशी शिव कूं लहै ॥१॥
ऐसे सम्यक्त्वचरणचारित्र और संयमचरणचारित्र दो प्रकार के चारित्र का स्वरूप इस प्राभृत में कहा ।
इति श्रीकुन्दकुन्दस्वामि विरचित चारित्रप्राभृत की पण्डित जयचन्द्र छाबड़ा कृत देशभाषावचनिका का हिन्दी भाषानुवाद समाप्त ॥३॥