ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 22 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
जीवा पोग्गलकाया आयासं अत्थिकाइया सेसा ।
अमया अत्थित्तमया कारणभूदा दु लोगस्स ॥22॥
अर्थ:
[जीवाः] जीव, [पुद्गलकायाः] पुद्गलकाय, [आकाशम्] आकाश और [शेषौअस्तिकायौ] शेष दो अस्तिकाय [अमयाः] अकृत हैं, [अस्तित्वमयाः] अस्तित्वमय हैं और [हि]
वास्तव में [लोकस्य कारणभूताः] लोक के कारणभूत हैं ।
समय-व्याख्या:
अत्र सामान्येनोक्तलक्षणानां पण्णां द्रव्याणां मध्यात् पंचानामस्तिकायत्वं व्यवस्थापितम् । अकृत्वात् अस्तित्वमयत्वात् विचित्रात्मपरिणतिरूपस्य लोकस्य कारणत्वाच्चाभ्युपगम्यमानेषु षट᳭सु द्रव्येषु जीवपुद्गलाकाशधर्माधर्मा: प्रदेशप्रचयात्मकत्वात् पंचास्तिकाया: । न खलु कालस्तदभावादस्तिकाय इति सामर्थ्यादवसीयत इति ॥२२॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यहाँ, (इस गाथा में), सामान्यत: जिनका स्वरूप (पहले) कहा गया है ऐसे छह द्रव्यों में से पाँच को अस्तिकायपना स्थापित किया गया है ।
अकृत होने से, अस्तित्व-मय होने से और अनेक प्रकार की अपनी परिणति-रूप लोक के कारण होने से जो स्वीकार (सम्मत) किये गए हैं ऐसे छह द्रव्यों में जीव, पुद्गल, आकाश, धर्म और अधर्म प्रदेश-प्रचयात्मक (प्रदेशों के समूह-मय) होने से वे पाँच अस्तिकाय हैं । काल को प्रदेश-प्रचयात्मकपने का अभाव होने से वास्तव में अस्तिकाय नहीं है ऐसा (बिना कथन किये भी) सामर्थ्य से निश्चित होता है ॥२२॥