ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 36 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
सस्सदमधमुच्छेदं भव्वमभव्वं च सुण्णमिदरं च । (36)
विण्णाणमविण्णाणं ण वि जुज्जदि असदि सब्भावे ॥37॥
अर्थ:
(मोक्ष में जीव का) सद्भाव न होने पर शाश्वत / नाशवान, भव्य (होने योग्य) / अभव्य (न होने योग्य), शून्य / अशून्य, विज्ञान और अविज्ञान (जीव में) घटित नहीं होते हैं ।
समय-व्याख्या:
अत्र जीवाभावो मुक्तिरिति निरस्तम् । द्रव्यं द्रव्यतया शाश्वतमिति, नित्ये द्रव्ये पर्यायाणां प्रतिसमयमुच्छेद इति, द्रव्यस्य सर्वदा अभूतपर्यायै: भाव्यमिति, द्रव्यस्य सर्वदा भूतपर्यायैरभाव्यमिति, द्रव्यमन्यद्रव्यै: सदा शून्यमिति, द्रव्यं स्वद्रव्येण सदाऽशून्यमिति, क्वचिज्जीवद्रव्येऽनंतं ज्ञानं क्वचित्सांतं ज्ञानमिति, क्वचिज्जीवद्रव्येऽनंतं क्वचित्सांतमज्ञानमिति—एतदन्यथानुपपद्यमानं मुक्तौ जीवस्य सद्भावमावेदयतीति ॥३६॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यहाँ, 'जीव का अभाव से मुक्ति है' इस बात का खण्डन किया है ।
- द्रव्य, द्रव्य-रूप से शाश्वत है; नित्य द्रव्य में पर्यायों का प्रति-समय नाश होता है,
- द्रव्य, सर्वदा अभूत पर्याय-रूप से भावी (होने योग्य, परिणामित होने योग्य) है; द्रव्य, सर्वदा भूत पर्याय-रूप से अभावी (न होने योग्य) है,
- द्रव्य, अन्य द्रव्यों से सदा शून्य है; द्रव्य, स्व-द्रव्य से सदा अशून्य है,
- किसी जीव-द्रव्य में अनंत ज्ञान और किसी में सान्त ज्ञान है; किसी जीव-द्रव्य में अनन्त अज्ञान और किसी में सान्त अज्ञान है