ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 39 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
उवओगो खलु दुविहो णाणेण य दंसणेण संजुत्तो । (39)
जीवस्स सव्वकालं अणण्णभूदं वियाणीहि ॥40॥
अर्थ:
वास्तव में जीव के सर्वकाल, अनन्यरूप से रहनेवाला, ज्ञान और दर्शन से संयुक्त दो प्रकार का उपयोग जानो ।
समय-व्याख्या:
आत्मनश्चैतन्यानुविधायी परिणाम उपयोग: । सोऽपि द्विविध:—ज्ञानोपयोगो दर्शनोपयोगश्च । तत्र विशेषग्राहि ज्ञानं, सामान्यग्राहि दर्शनम् । उपयोगश्च सर्वदा जीवादपृथग्भूत एव, एकास्तित्वनिर्वृत्तत्वादिति ॥३९॥
समय-व्याख्या हिंदी :
आत्मा का चैतन्य-अनुविधायी (अर्थात् चैतन्य का अनुसरण करनेवाला) परिणाम सो उपयोग है । वह भी दो प्रकार का है -- ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग । वहां, विशेष को ग्रहण करनेवाला ज्ञान है और सामान्य को ग्रहण करनेवाला दर्शन है (अर्थात् विशेष जिसमें प्रतिभासित हो वह ज्ञान है और सामान्य जिसमें प्रतिभासित हो वह दर्शन है) । और उपयोग सर्वदा जीव से अपृथग्भूत (अभिन्न) ही है, क्योंकि एक अस्तित्व से रचित है ॥३९॥