ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 46 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
णाणं धणं च कुव्वदि धणिणं जह णाणिणं च दुविधेहिं । (46)
भण्णंति तह पुधत्तं एयत्तं चावि तच्चण्हू ॥53॥
अर्थ:
जिस प्रकार ज्ञान और धन (जीव को) ज्ञानी और धनी -- दो प्रकार से करते हैं; उसीप्रकार तत्त्वज्ञ पृथक्त्व और एकत्व कहते हैं ।
समय-व्याख्या:
वस्तुत्वभेदाभेदोदाहरणमेतत् । यथा धनं भिन्नास्तित्वनिर्वृत्तं भिन्नास्तित्वनिर्वृत्तस्य, भिन्नस्थानं भिन्नस्थानस्य, भिन्नसंख्यं भिन्नसंख्यस्य, भिन्नविषयलब्धवृत्तिकं भिन्नविषयलब्धवृत्तिकस्य पुरुषस्य धनीति व्यपदेशं पृथक्त्वप्रकारेण करुते, यथा च ज्ञानमभिन्नास्तित्वनिर्वृत्तमभिन्नस्तित्वनिर्वृत्तस्याभिन्नसंस्थानमभिन्नसंस्थानस्याभिन्नसंख्यमभिन्नसंख्यस्याभिन्नलब्धवृत्तिकमभिन्नविषयलब्धवृत्तिकस्य पुरुषस्य ज्ञानीति व्यपदेशमेकत्वप्रकारेण कुरुते, तथान्यत्रापि । यत्र द्रव्यस्य भेदेन व्यपदेशादि: तत्र पृथक्त्वं, यत्राभेदेन तत्रैकत्वमिति ॥४६॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, वस्तु-रूप से भेद और (वस्तु-रूप से) अभेद का उदाहरण है ।
जिस प्रकार
- भिन्न अस्तित्व से रचित,
- भिन्न संस्थान वाला,
- भिन्न संख्या-वाला और
- भिन्न विषय में स्थित
- भिन्न अस्तित्व से रचित,
- भिन्न संस्थान वाला,
- भिन्न संख्या-वाले और
- भिन्न विषय में स्थित
- अभिन्न अस्तित्व से रचित,
- अभिन्न संस्थान वाला,
- अभिन्न संख्या-वाला और
- अभिन्न विषय में स्थित
- अभिन्न अस्तित्व से रचित,
- अभिन्न संस्थान वाला,
- अभिन्न संख्या-वाले और
- अभिन्न विषय में स्थित