ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 50-51 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
वण्णरसगंधफासा परमाणुपरूविदा विसेसेहिं । (50)
दव्वादो य अणण्णा अण्णत्तपयासगा होंति ॥57॥
दंसणणाणाणि तहा जीवणिबद्धाणि णण्णभूदाणि । (51)
ववदेसदो पुधत्तं कुव्वन्ति हि णो सहावादो ॥58॥
अर्थ:
जैसे परमाणु में प्ररूपित; द्रव्य से अनन्य वर्ण, रस, गंध, स्पर्श विशेषों द्वारा अन्यत्व के प्रकाशक होते हैं; उसीप्रकार जीव में निबद्ध; अनन्यभूत दर्शन, ज्ञान व्यपदेश से पृथक्त्व करते हैं; स्वभाव से नहीं।
समय-व्याख्या:
दृष्टांतदार्ष्टान्तिकार्थपुरस्सरो द्रव्यगुणानामनर्थांतरत्वव्याख्योपंसहारोऽयम् । वर्णरसगंधास्पर्शा हि परमाणो: प्ररूप्यंते; ते च परमाणोरविभक्तप्रदेशत्वेनानन्येऽपि संज्ञादिव्यपदेशनिबंधनैर्विशेषैरन्यत्वं प्रकाशयन्ति । एवं ज्ञानदर्शने अध्यात्मनि संबद्धे आत्मद्रव्यादविभक्तप्रदेशत्वेनानन्येऽपि संज्ञादिव्यपदेशनिबंधनैर्विशेषै: पृथक्त्वमासादयत; स्वभावस्तु नित्यमपृथक्त्वमेव बिभ्रत: ॥५०-५१॥
समय-व्याख्या हिंदी :
१दृष्टान्त-रूप और दार्ष्टान्त-रूप पदार्थ-पूर्वक, द्रव्य तथा गुणों के अभिन्न-पदार्थ-पने के व्याख्यान का यह उपसंहार है ।
वर्ण-रस-गन्ध-स्पर्श वास्तव में परमाणु में प्रारूपित किये जाते हैं; वे परमाणु से अभिन्न प्रदेश-वाले होने के कारण अनन्य होने पर भी, संज्ञादि व्यपदेश के कारण-भूत विशेषों द्वारा अन्यत्व को प्रकाशित करते हैं । इस प्रकार आत्मा में सम्बद्ध ज्ञान-दर्शन भी आत्म-द्रव्य से अभिन्न प्रदेश-वाले होने के कारण अनन्य होने पर भी, संज्ञादि व्यपदेश के कारण-भूत विशेषों द्वारा पृथक-पने को प्राप्त होते हैं, परन्तु स्वभाव से सदैव अपृथक-पने को ही धारण करते हैं ॥५०-५१॥
इस प्रकार उपयोग गुण का व्याख्यान समाप्त हुआ ।
१दार्ष्टान्त = दृष्टान्त द्वारा समझानी हो वह बात ; उपमेय (यहाँ परमाणु और वर्णादिक दृष्टान्त-रूप पदार्थ हैं तथा जीव और ज्ञानादिक दार्ष्टान्त-रूप पदार्थ हैं)