ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 84 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
उदयं जह मच्छाणं गमणाणुग्गहयरं हवदि लोए । (84)
तह जीवपुग्गलाणं धम्मं दव्वं वियाणीहि ॥92॥
अर्थ:
जैसे लोक में जल मछलियों के गमन में अनुग्रह करता है; उसीप्रकार धर्मद्रव्य जीव-पुद्गलों के गमन में अनुग्रह करता है ऐसा जानो।
समय-व्याख्या:
धर्मस्य गतिहेतुत्वे द्रष्टान्तोऽयम् ।
यथोदकं स्वयमगच्छदगमयच्च स्वयमेव गच्छतां मत्स्यानामुदासीनाविनाभूत-सहायकारणमात्रत्वेन गमनमनुगृह्णाति, तथा धर्मोऽपि स्वयमगच्छन् अगमयंश्च स्वयमेव गच्छतां जीवपुद्गलानामुदासीनाविनाभूतसहायकारणमात्रत्वेन गमनमनुगृह्णाति इति ॥८४॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, धर्म के गति-हेतुत्त्व का दृष्टांत है।
जिस प्रकार पानी स्वयं गमन न करता हुआ और (पर को) गमन न कराता हुआ, स्वयमेव गमन करती हुई मछलियों को उदासीन अविनाभावी सहाय-रूप कारण-मात्र रूप से गमन में १अनुग्रह करता है, उसी प्रकार धर्म (धर्मास्तिकाय) भी स्वयं गमन न करता हुआ और (पर को) गमन न कराता हुआ, स्वयमेव गमन करते हुए जीव-पुद्गलों को उदासीन अविनाभावी सहाय-रूप कारण-मात्र रूप से गमन में अनुग्रह करता है ॥८४॥
१अनुग्रह = गमन में अनुग्रह करना अर्थात गमन में उदासीन अविनाभावी सहाय-रूप (निमित्त-रूप) कारण-मात्र होना ।