ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 97 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
जीवा पुग्गलकाया सह सक्किरिया हवंति ण य सेसा । (97)
पुग्गलकरणा जीवा खंदा खलु कालकरणेहिं दु ॥105॥
अर्थ:
बाह्य करण सहित जीव और पुद्गल सक्रिय हैं; शेष द्रव्य सक्रिय नहीं, निष्क्रिय हैं। जीव पुद्गल-करणवाले हैं और वास्तव में स्कन्ध काल-करणवाले हैं।
समय-व्याख्या:
अत्र सक्रियनिष्क्रियत्वमुक्तम् ।
प्रदेशान्तरप्राप्तिहेतुः परिस्पन्दनरूपपर्यायः क्रिया । तत्र सक्रिया बहिरङ्गसाधनेनसहभूताः जीवाः, सक्रिया बहिरङ्गसाधनेन सहभूताः पुद्गलाः । निष्क्रियमाकाशं, निष्क्रियोधर्मः, निष्क्रियोऽधर्मः, निष्क्रियः कालः । जीवानां सक्रियत्वस्य बहिरङ्गसाधनं कर्मनोकर्मोपचयरूपाः पुद्गला इति ते पुद्गलकरणाः । तदभावान्निःक्रियत्वं सिद्धानाम् ।पुद्गलानां सक्रियत्वस्य बहिरङ्गसाधनं परिणामनिर्वर्तकः काल इति ते कालकरणाः । न चकर्मादीनामिव कालस्याभावः । ततो न सिद्धानामिव निष्क्रियत्वं पुद्गलानामिति ॥९७॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यहाँ (द्रव्यों का) सक्रिय-निष्क्रियपना कहा गया है ।
प्रदेशान्तर प्राप्ति का हेतु (अन्य प्रदेश की प्राप्ति का कारण) ऐसी जो परिस्पंद-रूप पर्याय, वह क्रिया है । वहाँ, बहिरंग साधन के साथ रहने वाले जीव सक्रिय हैं, बहिरंग साधन के साथ रहने वाले पुद्गल सक्रिय हैं । आकाश निष्क्रिय है, धर्म निष्क्रिय है, अधर्म निष्क्रिय है, काल निष्क्रिय है ।
जीवों को सक्रिय-पने का बहिरंग साधन कर्म-नोकर्म के संचय रूप पुद्गल है, इसलिये जीव पुद्गल-करण वाले हैं । उसके अभाव के कारण (पुद्गल-करण के अभाव के कारण) सिद्धों को निष्क्रिय-पना है (अर्थात सिद्धों को कर्म-नोकर्म के संचय-रूप पुद्गलों का अभाव होने से वे निष्क्रिय हैं ।) पुद्गलों को सक्रियपने का बहिरंग साधन १परिणाम-निष्पादक काल है, इसलिये पुद्गल काल-करण-वाले हैं ।
कर्मादिक की भाँति (अर्थात जिस प्रकार कर्म-नोकर्मरूप पुद्गलों का अभाव होता है उस प्रकार) काल का अभाव नहीं होता, इसलिये सिद्धों की भाँति (अर्थात जिस प्रकार सिद्धों को निष्क्रियपना होता है उस प्रकार) पुद्गलों को निष्क्रियपना नहीं होता ॥९७॥
१परिणाम-निष्पादक = परिणाम को उत्पन्न करने वाला, परिणाम उत्पन्न होने में जो निमित्तभूत (बहिरंग साधनभूत) हैं ऐसा ।