ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 130 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
लिंगेहिं जेहिं दव्वं जीवमजीवं च हवदि विण्णादं । (130)
तेऽतब्भावविसिट्ठा मुत्तामुत्ता गुणा णेया ॥140॥
अर्थ:
जिन चिन्हों से जीव और अजीव द्रव्य ज्ञात होते है, वे अतद्भाव विशिष्ट (द्रव्य से अतद्भाव के द्वारा भिन्न) मूर्त और अमूर्त गुण जानना चाहिये ।
तात्पर्य-वृत्ति:
अथ ज्ञानादिविशेषगुणभेदेन द्रव्यभेदमावेदयति --
लिंगेहिं जेहिं लिङ्गैर्यैःसहजशुद्धपरमचैतन्यविलासरूपैस्तथैवाचेतनैर्जडरूपैर्वा लिङ्गैश्चिह्नैर्विशेषगुणैर्यैः करणभूतैर्जीवेन कर्तृभूतेन हवदि विण्णादं विशेषेण ज्ञातं भवति । किं कर्मतापन्नम् । दव्वं द्रव्यम् । कथंभूतम् । जीवमजीवं चजीवद्रव्यमजीवद्रव्यं च । ते मुत्तामुत्ता गुणा णेया ते तानि पूर्वोक्तचेतनाचेतनलिङ्गानि मूर्तामूर्तगुणा ज्ञेया ज्ञातव्याः । ते च कथंभूताः । अतब्भावविसिट्ठा अतद्भावविशिष्टाः । तद्यथा --
शुद्धजीवद्रव्ये येकेवलज्ञानादिगुणास्तेषां शुद्धजीवप्रदेशैः सह यदेकत्वमभिन्नत्वं तन्मयत्वं स तद्भावो भण्यते, तेषामेव गुणानां तैः प्रदेशैः सह यदा संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदः क्रियते तदा पुनरतद्भावो भण्यते, तेनातद्भावेन संज्ञादिभेदरूपेण स्वकीयस्वकीयद्रव्येण सह विशिष्टा भिन्ना इति, द्वितीयव्याख्यानेन पुनः स्वकीय- द्रव्येण सह तद्भावेन तन्मयत्वेनान्यद्रव्याद्विशिष्टा भिन्ना इत्यभिप्रायः । एवं गुणभेदेन द्रव्यभेदो ज्ञातव्यः ॥१४०॥
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
[लिंगेहिं जेहिं] जिन सहज शुद्ध परम चैतन्य विलासरूप अथवा उसीप्रकार अचेतन जड़ रूप लिंगों-चिन्हों-विशेष गुणों रूप साधनों से जीवरूपी कर्ता द्वारा [हवदि विण्णादं] विशेषरूप से ज्ञात होता है । इस गाथा में कर्मपने को प्राप्त कौन है? कौन ज्ञात होता है? [दव्वं] द्रव्य ज्ञात होता है । कैसा द्रव्य ज्ञात होता है? [जीवमजीवं च] जीव और अजीव द्रव्य ज्ञात होता है । [ते मुत्तामुत्तागुणा णेया] उन पहले कहे हुये चेतन-अचेतन (द्रव्यों के) चिन्ह मूर्त-अमूर्त गुण जानना चाहिये । वे गुण कैसे हैं? [अतब्भावविसिट्ठा] वे अतद्भाव विशिष्ट हैं (द्रव्य से अतद्भावरूप भिन्न है) ।
वह इसप्रकार- शुद्ध जीव द्रव्य में जो केवलज्ञानादि गुण हैं, उनका शुद्ध जीव के प्रदेशों के साथ जो एकत्व, अभिन्नत्व, तन्मयत्व, एकरूपत्व है, वह भाव कहलाता है । उन ही गुणों का उन प्रदेशों के साथ जब संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन आदि भेद किया जाता है, तब फिर अतद्भाव कहलाता है; इस संज्ञादि भेदरूप अतद्भाव द्वारा (वे) अपने-अपने द्रव्य के साथ विशिष्ट-कथंचित् भिन्न हैं ।
अथवा दूसरे व्याख्यान से अपने द्रव्य के साथ तद्भाव-तन्मयता के कारण अन्य द्रव्य से विशिष्ट-भिन्न है - ऐसा अभिप्राय है । इसप्रकार गुणभेद से द्रव्य का भेद जानना चाहिये ॥१४०॥