ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 17 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
भंगविहूणो य भवो संभवपरिवज्जिदो विणासो हि ।
विज्जदि तस्सेव पुणो ठिदिसंभवणाससमवाओ ॥17॥
अर्थ:
[भङ्गविहिन: च भव:] उसके (शुद्धात्मस्वभाव को प्राप्त आत्मा के) विनाश रहित उत्पाद है, और [संभवपरिवर्जित: विनाश: हि] उत्पाद रहित विनाश है । [तस्य एव पुन:] उसके ही फिर [स्थितिसंभवनाशसमवाय: विद्यते] स्थिति, उत्पाद और विनाश का समवाय मिलाप, एकत्रपना विद्यमान है ॥१७॥
तात्पर्य-वृत्ति:
एवंसर्वज्ञमुख्यत्वेन प्रथमगाथा । स्वयंभूमुख्यत्वेन द्वितीया चेति प्रथमस्थले गाथाद्वयं गतम् ॥ अथास्यभगवतो द्रव्यार्थिकनयेन नित्यत्वेऽपि पर्यायार्थिकनयेनानित्यत्वमुपदिशति --
भंगविहूणो य भवो भङ्ग-विहीनश्च भवः जीवितमरणादिसमताभावलक्षणपरमोपेक्षासंयमरूपशुद्धोपयोगेनोत्पन्नो योऽसौ भवः केवलज्ञानोत्पादः । स किंविशिष्टः । भङ्गविहिनो विनाशरहितः । संभवपरिवज्जिदो विणासो त्ति संभवपरिवर्जितो विनाश इति । योऽसौ मिथ्यात्वरागादिसंसरणरूपसंसारपर्यायस्य विनाशः । स किंविशिष्टः । संभवविहीनः निर्विकारात्मतत्त्वविलक्षणरागादिपरिणामाभावादुत्पत्तिरहितः । तस्माज्ज्ञायतेतस्यैव भगवतः सिद्धस्वरूपतो द्रव्यार्थिकनयेन विनाशो नास्ति । विज्जदि तस्सेव पुणो ठिदिसंभव णाससमवाओ विद्यते तस्यैव पुनः स्थितिसंभवनाशसमवायः । तस्यैव भगवतः पर्यायार्थिकनयेन शुद्धव्यञ्जनपर्यायापेक्षया सिद्धपर्यायेणोत्पादः, संसारपर्यायेण विनाशः, केवलज्ञानादिगुणाधारद्रव्यत्वेन ध्रौव्यमिति । ततः स्थितं द्रव्यार्थिकनयेन नित्यत्वेऽपि पर्यायार्थिकनयेनोत्पादव्ययध्रौव्यत्रयंसंभवतीति ॥१७॥
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
[भंगविहीणो य भवो] विनाश रहित उत्पाद जीवन-मरण आदि में समता-भाव लक्षण परम-उपेक्षा संयम-रूप शुद्धोपयोग से उत्पन्न जो वह केवलज्ञान रूप उत्पाद । वह केवलज्ञानरूप उत्पाद किस विशेषता वाला है ? वह केवलज्ञानरूप उत्पाद विनाश रहित है । [संभवपरिवज्जिदो विणासो त्ति] उत्पाद रहित विनाश है । जो वह मिथ्यात्व रागादि परिवर्तनरूप संसार पर्याय का विनाश है । वह संसार पर्याय का विनाश किस विशेषता वाला है? वह संसार पर्याय का विनाश उत्पाद से रहित है- वीतरागी आत्मतत्त्व से विरुद्ध लक्षण वाले रागादि परिणामों का अभाव होने से उत्पाद से रहित है । इससे जाना जाता है कि उन्हीं भगवान के द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा सिद्ध-स्वरूप से विनाश नहीं है । [विज्जदि तस्सेव पुणो ठिदिसंभवणाससमवाओ] फिर भी उन्हीं के ध्रौव्य-उत्पाद-व्यय का समवाय (संग्रह) विद्यमान है । उन्हीं भगवान के पर्यायार्थिकनय से शुद्ध व्यंजन पर्याय की अपेक्षा सिद्ध पर्यायरूप से उत्पाद संसार पर्यायरूप से विनाश और केवलज्ञानादि गुणों के आधारभूत द्रव्यपने से धौव्य है ।
इससे सिद्ध हुआ कि द्रव्यार्थिकनय से नित्यपना होने पर भी पर्यायार्थिकनय से उत्पाद-व्यय-धौव्य तीनों पाये जाते हैं ।