ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 225 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
उवयरणं जिणमग्गे लिंगं जहजादरूवमिदि भणिदं । (225) ।
गुरुवयणं पि य विणओ सुत्तचझयणं च णिद्दिट्ठं ॥255॥
अर्थ:
[यथाजातरूपं लिंगं] यथाजातरूप (जन्मजात-नग्न) जो लिंग वह [जिनमार्गे] जिनमार्ग में [उपकरणं इति भणितम्] उपकरण कहा गया है, [गुरुवचनं] गुरु के वचन, [सूत्राध्ययनं च] सूत्रों का अध्ययन [च] और [विनय: अपि] विनय भी [निर्दिष्टम्] उपकरण कही गई है ।
तात्पर्य-वृत्ति:
अथ पूर्वोक्तस्योपकरणरूपा-पवादव्याख्यानस्य विशेषविवरणं करोति --
इदि भणिदं इति भणितं कथितम् । किम् । उवयरणं उपकरणम् । क्व । जिणमग्गे जिनोक्तमोक्षमार्गे । किमुपकरणम् । लिंगं शरीराकारपुद्गलपिण्डरूपं द्रव्यलिङ्गम् । किंविशिष्टम् । जहजादरूवं यथाजातरूपं, यथाजातरूपशब्देनात्र व्यवहारेण संगपरित्यागयुक्तंनग्नरूपं, निश्चयेनाभ्यन्तरेण शुद्धबुद्धैकस्वभावं परमात्मस्वरूपं । गुरुवयणं पि य गुरुवचनमपि,निर्विकारपरमचिज्जयोतिःस्वरूपपरमात्मतत्त्वप्रतिबोधकं सारभूतं सिद्धोपदेशरूपं गुरूपदेशवचनम् । नकेवलं गुरूपदेशवचनम्, सुत्तज्झयणं च आदिमध्यान्तवर्जितजातिजरामरणरहितनिजात्मद्रव्यप्रकाशक-सूत्राध्ययनं च, परमागमवाचनमित्यर्थः । णिद्दिट्ठं उपकरणरूपेण निर्दिष्टं कथितम् । विणओ स्वकीयनिश्चयरत्नत्रयशुद्धिर्निश्चयविनयः, तदाधारपुरुषेषु भक्तिपरिणामो व्यवहारविनयः । उभयोऽपिविनयपरिणाम उपकरणं भवतीति निर्दिष्टः । अनेन किमुक्तं भवति — निश्चयेन चतुर्विधमेवोपकरणम् ।अन्यदुपकरणं व्यवहार इति ॥२२५॥
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
अब पहले (२४२वीं गाथा में) कहे गये उपकरण रूप अपवाद व्याख्यान का विशेष कथन करते हैं -
[इदि भणिदं] ऐसा कहा गया है । क्या कहा गया है? [उवयरणं] उपकरण कहा गया है । उपकरण कहां कहा गया है? [जिणमग्गे] जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहे गये मोक्षमार्ग में, उपकरण कहा गया है । वहां, उपकरण किसे कहा गया है? [लिंगं] शरीर के आकार पुद्गल पिण्डरूप द्रव्यलिंग को, वहाँ उपकरण कहा गया है । वह द्रव्यलिंग किस विशेषता वाला है? [जहजादरूवं] यथाजातरूप-यथाजातरूप शब्द के द्वारा यहाँ, व्यवहार से परिग्रह के परित्याग सहित नग्नरूप और निश्चय से अन्दर में शुद्ध-बुद्ध एक स्वभाव परमात्म-स्वरूप विवक्षित है । [गुरुवयणं पि य] गुरु के वचन भी -विकार रहित उत्कृष्ट चैतन्य ज्योतिस्वरूप परमात्मतत्व का ज्ञान करानेवाले, सारभूत सिद्ध (सफल) उपदेशरूप गुरु के उपदेशरूप वचन । गुरु के उपदेशरूप वचन मात्र ही नहीं, वरन् [सुत्तज्झयणं च] और आदि-मध्य-अन्त से रहित, जन्म-जरा (बुढ़ापा)-मरण से रहित अपने आत्मद्रव्य को प्रकाशित करनेवाले- बतानेवाले सूत्रों का अध्ययन-परमागम का वाचन- ऐसा अर्थ है । [णिद्दिट्ठं] उपकरणरूप कहे गये हैं । [विणओ] अपने निश्चयरत्नत्रय की शुद्धि निश्चय-विनय है और उसके आधारभूत पुरुषों में भक्ति का परिणाम व्यवहार-विनय है । दोनों ही प्रकार के विनय परिणाम उपकरण हैं -- ऐसा कहा गया है ।
इससे क्या कहा गया है? निश्चय से चार ही उपकरण हैं और दूसरे तो व्यवहार उपकरण हैं ॥२५५॥