ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 258 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
जदि ते विसयकसाया पाव त्ति परूविदा व सत्थेसु । (258)
किह ते तप्पडिबद्धा पुरिसा णित्थारगा होंति ॥296॥
अर्थ:
[यदि वा] जबकि [ते विषयकषाया:] वे विषयकषाय [पापम्] पाप हैं [इति] इस प्रकार [शास्त्रेषु] शास्त्रों में [प्ररूपिता:] प्ररूपित किया गया है, तो [तवतिबद्धा:] उनमें प्रतिबद्ध (विषय-कषायों में लीन) [ते पुरुषा:] वे पुरुष [निस्तारका:] निस्तारक (पार लगाने वाले) [कथं भवन्ति] कैसे हो सकते हैं?
तात्पर्य-वृत्ति:
अथ तमेवार्थं प्रकारान्तरेणद्रढयति --
जदि ते विसयकसाया पाव त्ति परूविदा व सत्थेसु यदि चेत् ते विषयकषायाः पापमिति प्ररूपिताः शास्त्रेषु, किह ते तप्पडिबद्धा पुरिसा णित्थारगा होंति कथं ते तत्प्रतिबद्धा विषयकषायप्रतिबद्धाः पुरुषानिस्तारकाः संसारोत्तारका दातॄणाम्, न कथमपीति । एतदुक्तं भवति -- विषयकषायास्तावत्पाप-स्वरूपास्तद्वन्तः पुरुषा अपि पापा एव, ते च स्वकीयभक्तानां दातॄणां पुण्यविनाशका एवेति ॥२९६॥
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
[जदि ते विसयकसाया पाव त्ति परूविदा व सत्थेसु] यदि वे विषय-कषाय पाप हैं- ऐसा शास्त्रों में कहा गया है तो [किह ते तप्पडिबद्धो पुरिसा णित्थारगा होंति] वे तत्प्रतिबद्ध-विषयकषाय में प्रतिबद्ध-आसक्त पुरुष, निस्तारक-दाताओं को संसार से पार उतारने वाले, कैसे हो सकते हैं? किसी प्रकार भी नहीं हो सकते हैं ।
इससे यह कहा गया है कि सर्वप्रथम तो विषय-कषाय पाप स्वरूप हैं उनसे सहित पुरुष भी पाप ही हैं और वे अपने भक्त दाताओं के पुण्य का विनाश करनेवाले ही हैं ॥२९६॥