ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 70 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
जुत्तो सुहेण आदा तिरिओ वा माणुसो व देवो वा । (70)
भूदो तावदि कालं लहदि सुहं इन्दियं विविहं ॥74॥
अर्थ:
[शुभेन युक्त:] शुभोपयोग-युक्त [आत्मा] आत्मा [तिर्यक् वा] तिर्यंच, [मानुष: वा] मनुष्य [देव: वा] अथवा देव [भूत:] होकर, [तावत्कालं] उतने समय तक [विविधं] विविध [ऐन्द्रियं सुखं] इन्द्रिय-सुख [लभते] प्राप्त करता है ॥७०॥
तत्त्व-प्रदीपिका:
अथ शुभोपयोगसाध्यत्वेनेन्द्रियसुखमाख्याति -
अयमात्मेन्द्रियसुखसाधनीभूतस्य शुभोपयोगस्य सामर्थ्यात्तदधिष्ठानभूतानां तिर्यग्मानुषदेवत्वभूमिकानामन्यतमां भूमिकामवाप्य यावत्कालमवतिष्ठते, तावत्कालमनेकप्रकारमिन्द्रियसुखं समासादयतीति ॥७०॥
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
यह आत्मा इन्द्रिय-सुख के साधनभूत शुभोपयोग की सामर्थ्य से उसके अधिष्ठान-भूत (इन्द्रियसुख के स्थानभूत-आधारभूत ऐसी) तिर्यंच, मनुष्य और देवत्व की भूमिकाओं में से किसी एक भूमिका को प्राप्त करके जितने समय तक (उसमें) रहता है, उतने समय तक अनेक प्रकार का इन्द्रिय-सुख प्राप्त करता है ॥७०॥