ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 79 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
चत्ता पावारंभं समुट्ठिदो वा सुहम्मि चरियम्मि । (79)
ण जहदि जदि मोहादी ण लहदि सो अप्पगं सुद्धं ॥83॥
अर्थ:
[पापारम्भं] पापरम्भ को [त्यक्त्वा] छोड़कर [शुभे चरित्रे] शुभ चारित्र में [समुत्थित: वा] उद्यत होने पर भी [यदि] यदि जीव [मोहादीन्] मोहादि को [न जहाति] नहीं छोड़ता, तो [सः] वह [शुद्धं आत्मकं] शुद्ध आत्मा को [न लभते] प्राप्त नहीं होता ॥७९॥
तात्पर्य-वृत्ति:
अत्र तु द्वितीयज्ञानकण्डिकाप्रारम्भे शुद्धोपयोगाभावे शुद्धात्मानं न लभते इति तमेवार्थं व्यतिरेकरूपेण दृढयति --
चत्ता पावारंभं पूर्वं गृहवासादिरूपं पापारम्भं त्यक्त्वा समुट्ठिदो वा सुहम्मि चरियम्हि सम्यगुपस्थितो वा पुनः । क्व । शुभचरित्रे । ण जहदि जदि मोहादी न त्यजति यदिचेन्मोहरागद्वेषान् ण लहदि सो अप्पगं सुद्धं न लभते स आत्मानं शुद्धमिति । इतो विस्तरः --
कोऽपिमोक्षार्थी परमोपेक्षालक्षणं परमसामायिकं पूर्वं प्रतिज्ञाय पश्चाद्विषयसुखसाधकशुभोपयोगपरिणत्या मोहितान्तरङ्गः सन् निर्विकल्पसमाधिलक्षणपूर्वोक्तसामायिकचारित्राभावे सति निर्मोहशुद्धात्मतत्त्वप्रतिपक्षभूतान् मोहादीन्न त्यजति यदि चेत्तर्हि जिनसिद्धसदृशं निजशुद्धात्मानं न लभत इति सूत्रार्थः ॥८३॥
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
(अब आप्त-आत्मा के स्वरूप परिज्ञान विषयक मूढ़ता निराकरण की प्रधानता वाला सात गाथाओं में निबद्ध द्वितीय ज्ञानकण्डिका नामक दूसरा अन्तराधिकार प्रारम्भ होता है ।)
[चत्ता पावारंभं] - पहले घर में निवास आदि रूप पापारम्भ को छोड़कर [समुट्ठिदो वा सुहम्मि चरियम्हि] - फिर अच्छी तरह स्थित होता है । अच्छी तरह कहाँ स्थित होता है? शुभचारित्र में स्थित होता है। [ण जहदि जदि मोहादि] - यदि राग-द्वेष-मोह को नहीं छोड़ता है, [ण लहदि सो अप्पगं सुद्धं] - वह शुद्धात्मा को प्राप्त नहीं करता है ।
यहाँ विस्तार करते हैं - यदि कोई मोक्षार्थी, पहले परम-उपेक्षा लक्षण परम सामायिक की प्रतिज्ञा लेकर, बाद में विषय-सुख की साधक शुभोपयोग परिणति से मोहित चित्तवाला होता हुआ, निर्विकल्प समाधि स्वरूप पूर्वोक्त सामायिक का अभाव होने पर निर्मोह शुद्धात्म-तत्त्व से विरुद्ध मोहादि को नहीं छोड़ता है, तो जिन रूप सिद्ध-भगवान के समान निज-शुद्धात्मा को प्राप्त नही करता है -- यह गाथा का अर्थ है ।