ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 96 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
सब्भावो हि सहावो गुणेहिं सगपज्जएहिं चित्तेहिं । (96)
दव्वस्स सव्वकालं उप्पादव्वयधुवत्तेहिं ॥106॥
अर्थ:
गुणों तथा अनेक प्रकार की अपनी पर्यायों से और उत्पाद-व्यय-धौव्य रूप से सर्वकाल में द्रव्य का अस्तित्व वास्तव में (द्रव्य का) स्वभाव है ।
तात्पर्य-वृत्ति:
अथ प्रथमं तावत्स्वरूपास्तित्वं प्रतिपादयति --
सहावो हि स्वभावः स्वरूपं भवति हि स्वभावः स्वरूपं भवति हि स्फुटम् । कः कर्ता । सब्भावो सद्भावः शुद्धसत्ता शुद्धास्तित्वम् । कस्य स्वभावो भवति । दव्वस्स मुक्तात्मद्रव्यस्य । तच्च स्वरूपास्तित्वं यथा मुक्तात्मनः सकाशात्पृथग्भूतानां पुद्गलादिपञ्चद्रव्याणां शेषजीवानां च भिन्नं भवति न च तथा । कैः सह । गुणेहिं सगपज्जएहिं केवलज्ञानादिगुणैःकिञ्चिदूनचरमशरीराकारादिस्वकपर्यायैश्च सह । कथंभूतैः । चित्तेहिं सिद्धगतित्वमतीन्द्रियत्वमकायत्वमयोगत्वमवेदत्वमित्यादिबहुभेदभिन्नैः । न केवलं गुणपर्यायैः सह भिन्नं न भवति । उप्पादव्वयधुवत्तेहिंशुद्धात्मप्राप्तिरूपमोक्षपर्यायस्योत्पादो रागादिविकल्परहितपरमसमाधिरूपमोक्षमार्गपर्यायस्य व्ययस्तथा
मोक्षमोक्षमार्गाधारभूतान्वयद्रव्यत्वलक्षणं ध्रौव्यं चेत्युक्तलक्षणोत्पादव्ययध्रौव्यैश्च सह भिन्नं न भवति । कथम् । सव्वकालं सर्वकालपर्यन्तं यथा भवति । कस्मात्तैः सह भिन्नं न भवतीति चेत्। यतःकारणाद्गुणपर्यायास्तित्वेनोत्पादव्ययध्रौव्यास्तित्वेन च कर्तृभूतेन शुद्धात्मद्रव्यास्तित्वं साध्यते, शुद्धात्मद्रव्यास्तित्वेन च गुणपर्यायोत्पादव्ययध्रौव्यास्तित्वं साध्यत इति । तद्यथा --
यथा स्वकीय-द्रव्यक्षेत्रकालभावैः सुवर्णादभिन्नानां पीतत्वादिगुणकुण्डलादिपर्यायाणां संबन्धि यदस्तित्वं स एव सुवर्णस्य सद्भावः, तथा स्वकीयद्रव्यक्षेत्रकालभावैः परमात्मद्रव्यादभिन्नानां केवलज्ञानादिगुणकिंचिदून-चरमशरीराकारादिपर्यायाणां संबन्धि यदस्तित्वं स एव मुक्तात्मद्रव्यस्य सद्भावः । यथा स्वकीय-द्रव्यक्षेत्रकालभावैः पीतत्वादिगुणकुण्डलादिपर्यायेभ्यः सकाशादभिन्नस्य सुवर्णस्य सम्बन्धि यदस्तित्वं स एव पीतत्वादिगुणकुण्डलादिपर्यायाणां स्वभावो भवति, तथा स्वकीयद्रव्यक्षेत्रकालभावैः केवल-ज्ञानादिगुणकिंचिदूनचरमशरीराकारपर्यायेभ्यः सकाशादभिन्नस्य मुक्तात्मद्रव्यस्य संबन्धि यदस्तित्वं स एव केवलज्ञानादिगुणकिंचिदूनचरमशरीराकारपर्यायाणां स्वभावो ज्ञातव्यः । अथेदानीमुत्पादव्यय-ध्रौव्याणामपि द्रव्येण सहाभिन्नास्तित्वं कथ्यते । यथा स्वकीयद्रव्यादिचतुष्टयेन सुवर्णादभिन्नानांकटकपर्यायोत्पादकङ्कणपर्यायविनाशसुवर्णत्वलक्षणध्रौव्याणां संबन्धि यदस्तित्वं स एव सुवर्णसद्भावः, तथा स्वद्रव्यादिचतुष्टयेन परमात्मद्रव्यादभिन्नानां मोक्षपर्यायोत्पादमोक्षमार्गपर्यायव्ययतदुभयाधारभूतपरमात्मद्रव्यत्वलक्षणध्रौव्याणां संबन्धि यदस्तित्वं स एव मुक्तात्मद्रव्यसद्भावः । यथा स्वद्रव्यादि-चतुष्टयेन कटकपर्यायोत्पादकङ्कणपर्यायव्ययसुवर्णत्वलक्षणध्रौव्येभ्यः सकाशादभिन्नस्य सुवर्णस्य संबन्धि यदस्तित्वं स एव कटकपर्यायोत्पादकङ्कणपर्यायव्ययतदुभयाधारभूतसुवर्णत्वलक्षणध्रौव्याणां स्वभावः,तथा स्वद्रव्यादिचतुष्टयेन मोक्षपर्यायोत्पादमोक्षमार्गपर्यायव्ययतदुभयाधारभूतमुक्तात्मद्रव्यत्वलक्षण-ध्रौव्येभ्यः सकाशादभिन्नस्य परमात्मद्रव्यस्य संबन्धि यदस्तित्वं स एव मोक्षपर्यायोत्पादमोक्षमार्ग-पर्यायव्ययतदुभयाधारभूतमुक्तात्मद्रव्यत्वलक्षणध्रौव्याणां स्वभाव इति । एवं यथा मुक्तात्मद्रव्यस्यस्वकीयगुणपर्यायोत्पादव्ययध्रौव्यैः सह स्वरूपास्तित्वाभिधानमवान्तरास्तित्वमभिन्नं व्यवस्थापितं तथैव समस्तशेषद्रव्याणामपि व्यवस्थापनीयमित्यर्थः ॥१०६॥
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
[सहावो हि] वास्तव में स्वभाव-स्वरूप है । स्वभाव रूपकर्ता कौन है- स्वभाव क्या है? [सब्भावो] सद्भाव शुद्धसत्ता अथवा शुद्धअस्तित्व स्वभाव है । शुद्धअस्तित्व किसका स्वभाव है? [दव्वस्स] मुक्तात्मद्रव्य का स्वभाव है । और वह स्वरूपास्तित्व जैसे मुक्तात्माओं से भिन्नभूत पुद्गलादि पाँच द्रव्यों का और शेष जीव द्रव्यों का भिन्न है, वैसा भिन्न नहीं है । वह स्वरूप किनके साथ भिन्न नहीं है? [गुणेहिं सगपज्जएहिं] केवलज्ञानादि गुणों और कुछ कम अन्तिम शरीर के आकार आदि अपनी पर्यायों के साथ भिन्न नही है । वे पर्यायें कैसी हैं? चित्तेहिं- सिद्धगतित्व, अतीन्द्रियत्व, अशरीरत्व, अयोगत्व, अवेदत्व इत्यादि अनेक भेदों से पृथक्-पृथक् है । मात्र गुण-पर्यायों के साथ भिन्न नहीं है - ऐसा ही नहीं है, अपितु [उप्पादव्वयधुवत्तेहिं] शुद्धात्मा की प्राप्तिरूप मोक्षपर्याय का उत्पाद रागादि विकल्प रहित परमसमाधिरूप मोक्षमार्ग-रत्नत्रयपर्याय का व्यय तथा मोक्ष एवं मोक्षमार्ग के आधारभूत अन्वयरूप से रहनेवाली द्रव्यता लक्षण धौव्य - इसप्रकार कहे गये लक्षणवाले उत्पाद-व्यय-धौव्य के साथ भिन्न नहीं है । उन सबसे भिन्न कैसे नहीं है? [सव्वकालं] हमेशा ही उसरूप से रहने के कारण भिन्न नहीं है । अथवा उन उत्पादादि से भिन्न कब नही हैं? [सव्वकालं] हमेशा ही (कभी भी) उनसे भिन्न नहीं हैं । उन सबके साथ भिन्न क्यों नही है? क्योंकि कर्ताभूत गुण-पर्याय के अस्तित्व से और उत्पाद-व्यय-धौव्य के अस्तित्व से शुद्धात्मद्रव्य का अस्तित्व सिद्ध होता है, तथा शुद्धात्मद्रव्य के अस्तित्व से गुण-पर्याय उत्पाद-व्यय-धौव्य का अस्तित्व सिद्ध होता है; इसलिये ये सब परस्पर में भिन्न-भिन्न नहीं हैं ।
वह इसप्रकार -- जैसे अपने द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव द्वारा स्वर्ण से अभिन्न पीलापन आदि गुणों तथा कुण्डल आदि पर्यायों सम्बन्धी जो अस्तित्व है, वह ही स्वर्ण का शुद्ध अस्तित्व है; वैसे ही अपने द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव द्वारा परमात्म-द्रव्य से अभिन्न केवलज्ञानादि गुणों तथा अन्तिम शरीराकार से कुछ कम आकार आदि पर्यायों का जो अस्तित्व है, वही मुक्तात्मद्रव्य का शुद्ध अस्तित्व है । जैसे-अपने द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव द्वारा पीलेपन आदि गुणों तथा कुण्डल आदि पर्यायों से अभिन्न स्वर्ण सम्बन्धी जो अस्तित्व है वही पीलेपन आदि गुणों तथा कुण्डल आदि पर्यायों का स्वभाव है; उसीप्रकार अपने द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव द्वारा केवलज्ञानादि गुणों तथा अन्तिम शरीराकार से कुछ कम आकार आदि पर्यायों से अभिन्न मुक्तात्मा द्रव्य सम्बन्धी जो अस्तित्व है वही केवलज्ञानादि गुणों तथा अन्तिम शरीराकार से कुछ कम आकारादि पर्यायों का स्वभाव जानना चाहिये ।
अब यहाँ उत्पाद-व्यय- धौव्य का भी द्रव्य के साथ अभिन्न अस्तित्व कहते हैं । जैसे- अपने द्रव्यादि चतुष्टय द्वारा स्वर्ण से अभिन्न कटक (कड़ा) पर्याय से उत्पाद, कंकण पर्याय का विनाश और स्वर्णता लक्षण धौव्य सम्बन्धी जो अस्तित्व है, वही स्वर्ण का शुद्ध अस्तित्व है; उसीप्रकार स्वद्रव्यादि चतुष्टय द्वारा परमात्मा द्रव्य से अभिन्न मोक्षपर्याय का उत्पाद, मोक्षमार्ग पर्याय का व्यय तथा उन दोनों की आधारभूत परमात्मद्रव्यता लक्षण धौव्य सम्बन्धी जो अस्तित्व है, वही मुक्तात्मा द्रव्य का शुद्ध अस्तित्व है ।
जैसे स्वद्रव्यादि चतुष्टय द्वारा कटक पर्याय का उत्पाद, कंकण पर्याय का व्यय तथा स्वर्णता लक्षण धौव्य से अभिन्न स्वर्ण सम्बन्धी जो अस्तित्व है वही कटक पर्याय का उत्पाद, कंकण पर्याय का व्यय तथा उन दोनों के आधारभूत स्वर्णत्व लक्षण धौव्य का स्वभाव है; उसी प्रकार स्वद्रव्यादि चतुष्टय द्वारा मोक्षपर्याय का उत्पाद, मोक्षमार्ग पर्याय का व्यय तथा उन दोनों के आधारभूत मुक्तात्मद्रव्यत्व लक्षण धौव्य से अभिन्न परमात्मद्रव्य संबंधी जो अस्तित्व है, वही मोक्षपर्याय का उत्पाद, मोक्षमार्ग पर्याय का व्यय तथा उन दोनों के आधारभूत मुक्तात्म-द्रव्यत्व लक्षण धौव्य का स्वभाव है ।
इसप्रकार जैसे मुक्तात्म-द्रव्य की अपने गुण-पर्याय, उत्पाद-व्यय-धौव्य के साथ स्वरूपास्तित्व नामक अवान्तरसत्ता अभिन्न स्थापित की है; वैसे ही सम्पूर्ण शेष द्रव्यों की भी स्थापित करना चाहिये -- यह अर्थ है ॥१०६॥