ग्रन्थ:मोक्षपाहुड़ गाथा 13
From जैनकोष
परदव्वरओ बज्झदि विरओ मुच्चेइ विविहकम्मेहिं ।
ऐसो जिणउवदेसो १समासदो बंधमुक्खस्स ॥१३॥
परद्रव्यरत: बध्यते विरत: मुच्यते विविधकर्मभि: ।
एष: जिनोपदेश: समासत: बन्धमोक्षस्य ॥१३॥
आगे बंध और मोक्ष के कारण का संक्षेपरूप आगम का वचन कहते हैं -
अर्थ - जो जीव परद्रव्य में रत है, रागी है वह तो अनेक प्रकार के कर्मों से बंधता है, कर्मों का बंध करता है और जो परद्रव्य से विरत है-रागी नहीं है, वह अनेक प्रकार के कर्मों से छूटता है, यह बन्ध का और मोक्ष का संक्षेप में जिनदेव का उपदेश है ।
भावार्थ - बंध-मोक्ष के कारण की कथनी अनेक प्रकार से है, उसका यह संक्षेप है - जो परद्रव्य से रागभाव तो बंध का कारण और विरागभाव मोक्ष का कारण है, इसप्रकार संक्षेप से जिनेन्द्र का उपदेश है ॥१३॥