ग्रन्थ:मोक्षपाहुड़ गाथा 19
From जैनकोष
जे झायंति सदव्वं परदव्वपरम्मुहा दु सुचरित्त ।
ते जिणवराण मग्गे अणुलग्गा लहहिं णिव्वाणं ॥१९॥
ये ध्यायन्ति स्वद्रव्यं परद्रव्य पराङ्मुखास्तु सुचरित्रा: ।
ते जिनवराणां मार्गे अनुलग्ना: लभते निर्वाणम् ॥१९॥
आगे कहते हैं कि जो ऐसे निजद्रव्य का ध्यान करते हैं, वे निर्वाण को पाते हैं -
अर्थ - जो मुनि परद्रव्य से पराङ्मुख होकर स्वद्रव्य जो निज आत्मद्रव्य का ध्यान करते हैं वे प्रगट सुचरित्रा अर्थात् निर्दोष चारित्रयुक्त होते हुए जिनवर तीर्थंकरों के मार्ग का अनुलग्न (अनुसंधान, अनुसरण) करते हुए निर्वाण को प्राप्त करते हैं ।
भावार्थ - परद्रव्य का त्याग कर जो अपने स्वरूप का ध्यान करते हैं वे निश्चय चारित्ररूप होकर जिनमार्ग में लगते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं ॥१९॥