ग्रन्थ:मोक्षपाहुड़ गाथा 22
From जैनकोष
जो कोडिए ण जिप्पइ सुहडो संगामएहिं सव्वेहिं ।
सो किं जिप्पइ इक्किं णरेण संगामए सुहडो ॥२२॥
य: कोटय्या न जीयते सुभट: सङ्ग्रामकै: सर्वे: ।
स किं जीयते एकेन नरेण सङ्ग्रामे सुभट: ॥२२॥
आगे इसी अर्थ का दृष्टान्त कहते हैं -
अर्थ - जो कोई सुभट संग्राम में सब ही संग्राम के करनेवालों के साथ करोड़ मनुष्यों को भी सुगमता से जीते वह सुभट एक मनुष्य को क्या न जीते ? अवश्य ही जीते ।
भावार्थ - जो जिनमार्ग में प्रवर्ते वह कर्म का नाश करे ही, तो क्या स्वर्ग के रोकनेवाले एक पापकर्म का नाश न करे ? अवश्य ही करे ॥२२॥