ग्रन्थ:मोक्षपाहुड़ गाथा 30
From जैनकोष
सव्वासवणिरोहेण कम्मं खवदि संचिदं ।
जोयत्थो जाणए जोई जिणदेवेण भासियं ॥३०॥
सर्वास्रवनिरोधेन कर्म क्षपयति सञ्चितम् ।
योगस्थ: जानाति योगी जिनदेवेन भाषितम् ॥३०॥
आगे कहते हैं कि इसप्रकार ध्यान करने से सब कर्मों के आस्रव का निरोध करके संचित कर्मों का नाश करता है -
अर्थ - योग ध्यान में स्थित होता हुआ योगी मुनि सब कर्मों के आस्रव का निरोध करके संवरयुक्त होकर पहिले के बाँधे हुए कर्म जो संचयरूप हैं, उनका क्षय करता है इसप्रकार जिनदेव ने कहा है, वह जानो ।
भावार्थ - ध्यान से कर्म का आस्रव रुकता है इससे आगामी बंध नहीं होता है और पूर्व संचित कर्मों की निर्जरा होती है तब केवलज्ञान उत्पन्न करके मोक्ष प्राप्त होता है, यह आत्मा के ध्यान का माहात्म्य है ॥३०॥