ग्रन्थ:मोक्षपाहुड़ गाथा 34
From जैनकोष
रयणत्तयमाराहं जीवो आराहओ मुणेयव्वो ।
आराहणविहाणं तस्स फलं केवलं णाणं ॥३४॥
रत्नत्रयमाराधयन् जीव: आराधक: ज्ञातव्य: ।
आराधनाविधानं तस्य फलं केवलं ज्ञानम् ॥३४॥
आगे कहते हैं कि जो रत्नत्रय की आराधना करता है, वह जीव आराधक ही है -
अर्थ - रत्नत्रय सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र की आराधना करते हुए जीव को आराधक जानना और आराधना के विधान का फल केवलज्ञान है ।
भावार्थ - जो सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की आराधना करता है, वह केवलज्ञान को प्राप्त करता है, वह जिनमार्ग में प्रसिद्ध है ॥३४॥