ग्रन्थ:मोक्षपाहुड़ गाथा 68
From जैनकोष
जे पुण विसयविरत्त अप्पा णाऊण भावणासहिया ।
छंडंति चाउरंगं तवगुणजुत्त ण संदेहो ॥६८॥
ये पुन: विषयविरक्ता: आत्मानं ज्ञात्वा भावनासहिता: ।
त्यजन्ति चातुरङ्गं तपोगुणयुक्ता: न सन्देह: ॥६८॥
आगे कहते हैं कि जो विषयों से विरक्त होकर आत्मा को जानकर भाते हैं वे संसार को
छोड़ते हैं -
अर्थ - फिर जो पुरुष मुनि विषयों से विरक्त हो आत्मा को जानकर भाते हैं, बारंबार भावना द्वारा अनुभव करते हैं वे तप अर्थात् बारह प्रकार तप और मूलगुण उत्तरगुणों से युक्त होकर संसार को छोड़ते हैं, मोक्ष पाते हैं ।
भावार्थ - विषयों से विरक्त हो आत्मा को जानकर भावना करना, इससे संसार से छूटकर मोक्ष प्राप्त करो, यह उपदेश है ॥६८॥