ग्रन्थ:मोक्षपाहुड़ गाथा 75
From जैनकोष
पंचसु महव्वदेसु य पंचसु समिदीसु तीसु गुत्तीसु ।
जो मूढो अण्णाणी ण हु कालो भणइ झाणस्स ॥७५॥
पञ्चसु महाव्रतेषु च पञ्चसु समितिषु तिसृषु गुप्तिसु ।
य: मूढ: अज्ञानी न स्फुटं काल: भणिति ध्यानस्य ॥७५॥
जो ऐसा मानता है-कहता है कि अभी ध्यान का काल नहीं तो उसने पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति का स्वरूप भी नहीं जाना -
अर्थ - जो पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति इनमें मूढ है, अज्ञानी है अर्थात् इनका स्वरूप नहीं जानता है और चारित्रमोह के तीव्र उदय से इनको पाल नहीं सकता है वह इसप्रकार कहता है कि अभी ध्यान का काल नहीं है ॥७५॥