ग्रन्थ:मोक्षपाहुड़ गाथा 88
From जैनकोष
किं बहुणा भणिएणं जे सिद्धा णरवरा गए काले।
सिज्झिहहि जे वि भविया तं जाणह सम्ममाहप्पं॥८८॥
किं बहुना भणितेन ये सिद्धा: नरवरा: गते काले।
सेत्स्यन्ति येऽपि भव्या: त ाानीत सम्ययत्वमाहात्म्यम्॥८८॥
आगे इसको संक्षेप से कहते हैं -
अर्थ - आचार्य कहते हैं कि बहुत कहने से यया साध्य है ? जो नरप्रधान अतीतकाल में सिद्ध हुए हैं और आगामी काल में सिद्ध होंगे वह सम्ययत्व का माहात्म्य जानो।
भावार्थ - इस सम्ययत्व का ऐसा माहात्म्य है कि जो अष्टकर्मों का नाशकर मुक्तिप्राप्त अतीतकाल में हुए हैं तथा आगामी काल में होंगे वे इस सम्ययत्व से ही हुए हैं और होंगे, इसलिए आचार्य कहते हैं कि बहुत कहने से यया ? यह संक्षेप से कहा जानो कि मुक्ति का प्रधान कारण यह सम्ययत्व ही है। ऐसा मत जानो कि गृहस्थ के यया धर्म है, यह सम्ययत्व धर्म ऐसा है कि सब धर्मों के अंगों को सफल करता है॥८८॥