ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 4
From जैनकोष
तत्र सम्यग्दर्शनस्वरूपं व्याख्यातुमाह --
श्रद्धानं परमार्थाना-माप्तागमतपोभृताम्
त्रिमूढ़ापोढ-मष्टाङ्गं, सम्यग्दर्शन-मस्मयम् ॥4॥
टीका:
सम्यग्दर्शनं भवति । किम् ? श्रद्धानं रुचि: । केषां ? आप्तागमतपोभृतां वक्ष्यमाणस्वरूपाणाम् । न चैवं षड्द्रव्यसप्ततत्त्वनवपदार्थानां श्रद्धानमसङ्गृहीतमित्याशङ्कनीयम् आगमश्रद्धानादेव तच्छ्रद्धानसङ्ग्रहप्रसिद्धे: । अबाधितार्थप्रतिपादकमाप्तवचनं ह्यागम: । तच्छ्रद्धाने तेषां श्रद्धानं सिद्धमेव । किंविशिष्टनां तेषाम् ? परमार्थानां परमार्थभूतानां न पुनर्बौद्धमत इव कल्पितानाम् । कथम्भूतं श्रद्धानम् ? अस्मयं न विद्यते वक्ष्यमाणो ज्ञानदर्पाद्यष्टप्रकार: स्मयो गर्वो यस्य तत्। पुनरपि किंविशिष्टम् ? त्रिमूढापोढं त्रिभिर्मूढैर्वक्ष्यमाणलक्षणैरपोढं रहितं यत् । अष्टाङ्गं अष्टौ वक्ष्यमाणानि नि:शङ्कितत्वादीन्यङ्गानि स्वरूपाणि यस्य ॥४॥
आगे सम्यग्दर्शन का स्वरूप कहते हैं --
श्रद्धानं परमार्थाना-माप्तागमतपोभृताम्
त्रिमूढ़ापोढ-मष्टाङ्गं, सम्यग्दर्शन-मस्मयम् ॥4॥
टीकार्थ:
आप्त-देव, आगम-शास्त्र, तपोभृत-गुरु का जो आगम में स्वरूप बतलाया है, उन आप्त, आगम और तपोभृत का उसी रूप से दृढ़ श्रद्धान करना सो सम्यग्दर्शन है । आप्त, आगम, साधु का लक्षण आगे कहा जाएगा ।
यहाँ कोई शङ्का करे कि अन्य शास्त्रों में तो छह द्रव्य, सात तत्त्व तथा नौ पदार्थों के श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहा है, परन्तु यहाँ आचार्य ने देव-शास्त्र-गुरु की प्रतीति को सम्यग्दर्शन कहकर अन्य शास्त्रों में कथित लक्षण का संग्रह नहीं किया है, तो इसका समाधान यह है कि आगम के श्रद्धान से ही छह द्रव्य, सात तत्त्व और नौ पदार्थों के श्रद्धानरूप लक्षण का संग्रह हो जाता है । क्योंकि अबाधितार्थप्रतिपादकमाप्तवचनं ह्यागम: अबाधित अर्थ का कथन करने वाले जो आप्त के वचन हैं वे ही आगम हैं । इसलिए आगम के श्रद्धान से ही छह द्रव्यादिक का श्रद्धान संगृहीत हो जाता है । वे आप्त, आगम, गुरु परमार्थभूत हैं किन्तु बौद्धमत के द्वारा कल्पित सिद्धान्त परमार्थभूत नहीं है । वास्तव में ज्ञान, पूजा, जाति, बल, ऋद्धि, तप और शरीर इन आठ मदों से रहित लोकमूढ़ता, देवमूढ़ता और गुरुमूढ़ता से रहित और नि:शङ्कित, नि:काङ्क्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपगूहन, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना इन आठ अङ्गों से सहित श्रद्धान ही सम्यग्दर्शन कहलाता है । आठ अङ्गों, आठ मदों और तीन मूढताओं का लक्षण आगे कहेंगे ।