ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 79
From जैनकोष
साम्प्रतं दु:श्रुतिस्वरूपं प्ररूपयन्नाह --
आरम्भसङ्गसाहस - मिथ्यात्वद्वेषरागमदमदनै:
चेत: कलुषयतां श्रुति-रवधीनां दु:श्रुतिर्भवति ॥79॥
टीका:
दु:श्रुतिर्भवति । कासौ ? श्रुति:श्रवणं । केषाम् ? अवधीनां शास्त्राणाम् । किं कुर्वताम् ? कलुषयतां मलिनयताम् । किं तत् ? चेत: क्रोधमानमायालोभाद्याविष्टं चित्तं कुर्वतामित्यर्थ: । कै: कृत्वेत्याह -- आरम्भेत्यादि आरम्भश्च कृष्यादि: सङ्गश्च परिग्रह: तयो: प्रतिपादनं वार्तानीतौ विधीयते । 'कृषि: पशुपाल्यं वाणिज्यं च वार्ता' इत्यभिधानात्, साहसं चात्यद्भुतं कर्म वीरकथायां प्रतिपाद्यते, मिथ्यात्वं चाद्वैतक्षणिकमित्यादि, प्रमाणविरुद्धार्थप्रतिपादकशास्त्रेण क्रियते, द्वेषश्च विद्वेषीकरणादिशास्त्रेणाभिधीयते रागश्च वशीकरणादिशास्त्रेण विधीयते, मदश्च 'वर्णानां ब्राह्मणो गुरु' रित्यादिग्रन्थाज्ज्ञायते, मदनश्च रतिगुणविलासपताकादिशास्त्रादुत्कटो भवति तै: एतै: कृत्वा चेत: कलुषयतां शास्त्राणां श्रुतिर्दु:श्रुतिर्भवति ॥३३॥
दु:श्रुति अनर्थदण्ड
आरम्भसङ्गसाहस - मिथ्यात्वद्वेषरागमदमदनै:
चेत: कलुषयतां श्रुति-रवधीनां दु:श्रुतिर्भवति ॥79॥
टीकार्थ:
खेती आदि करना आरम्भ है और संग-परिग्रह है । इन दोनों का प्रतिपादन वार्तानीति में किया जाता है । 'कृषि: पशुपाल्यं-वाणिज्यं च वार्ता' इति अभिधानात् अर्थात् खेती, पशुपालन और व्यापार यह सब वार्ता है, ऐसा कहा गया है। अर्थशास्त्र को वार्ता कहते हैं । साहस का अर्थ अत्यन्त आश्चर्यजनक कार्य है । जिसका वर्णन वीर पुरुषों की कथाओं में किया जाता है । अद्वैतवाद तथा क्षणिकवाद मिथ्यात्व हैं। इनका वर्णन प्रमाणविरुद्ध अर्थ के प्रतिपादक शास्त्रों के द्वारा किया जाता है । द्वेष-द्वेषीकरण द्वेष को उत्पन्न करने वाले शास्त्रों के द्वारा कहा जाता है । वशीकरण आदि शास्त्रों के द्वारा राग उत्पन्न किया जाता है । मद-अहंकार है । इसकी उत्पत्ति 'वर्णानां ब्राह्मणो गुरु:' वर्णों का गुरु ब्राह्मण है इत्यादि ग्रन्थों से जानी जाती है । मदन का अर्थ काम है । यह रतिगुण विलासपताका आदि शास्त्रों से उत्कट होता है । इस प्रकार आरम्भादि के द्वारा चित्त को कलुषित करने वाले शास्त्रों का श्रवण करना दु:श्रुति नामक अनर्थदण्ड है । इसका त्याग करना दु:श्रुति अनर्थदण्डव्रत है ।