ग्रन्थ:शीलपाहुड़ गाथा 16
From जैनकोष
वायरणछंदवइसेसियववहारणायसत्थेसु ।
वेदेऊण सुदेसु य तेसु सुयं उत्तमं शीलं ॥१६॥
व्याकरणछन्दोवैशेषिकव्यवहारन्यायशास्त्रेषु ।
विदित्वा श्रुतेषु च तेषु श्रुतं उत्तमं शीलम् ॥१६॥
आगे कहते हैं कि बहुत शास्त्रों का ज्ञान होते हुए भी शील ही उत्तम है -
अर्थ - व्याकरण छंद वैशेषिक व्यवहार न्यायशास्त्र ये शास्त्र और श्रुत अर्थात् जिनागम इनमें उन व्याकरणादिक को और श्रुत अर्थात् जिनागम को जानकर भी इनमें शील हो वही उत्तम है ।
भावार्थ - व्याकरणादिक शास्त्र जाने और जिनागम को भी जाने तो भी उनमें शील ही उत्तम है । शास्त्रों को जानकर भी विषयों में ही आसक्त है तो उन शास्त्रों का जानना वृथा है, उत्तम नहीं है ॥१६॥