ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 29
From जैनकोष
317. विग्रहवत्या गते: कालोऽवधृत:। अविग्रहाया: कियान् काल इत्युच्यते –
317. विग्रहवाली गतिका काल मालूम पड़ा। अब विग्रहिरहित गतिका कितना काल है इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं –
एकसमयाऽविग्रहा।।29।।
एक समयवाली गति विग्रहरहित होती है।।29।।
318. एक: समयो [1]यस्या: सा एकसमया। न विद्यते विग्रहो[2] यस्या: सा अविग्रहा। गतिमतां हि जीवपुद्गलानांमव्याघातेनैकसमयिकी गतिरालोकान्तादपीति।
318. जिस गतिमें एक समय लगमा है वह एक समयवाली गति है। जिस गतिमें विग्रह अर्थात् मोड़ा नहीं लेना पड़ता वह मोड़ारहित गति हे। गमन करनेवाले जीव और पुद्गलोंके व्याघातके अभावमें एक समयवाली गति लोकपर्यन्त भी होती है यह इस सूत्रका तात्पर्य है।