ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 45
From जैनकोष
348. एवं तत्रोक्तलक्षणेषु जन्मसु अमूनि शरीराणि प्रादुर्भावमापद्यमानानि किमविशेषेण भवन्ति, उत कश्चिदस्ति प्रतिविशेष इत्यत आह –
348. इस प्रकार पूर्वोक्त लक्षण वाले इन जन्मों में क्या सामान्य से सब शरीर उत्पन्न होते हैं या इसमें कुछ विशेषता है। इस बात को बतलाने के लिए अब आगे का सूत्र कहते हैं –
गर्भसंमूर्च्छनजमाद्यम्।।45।।
पहला शरीर गर्भ और संमूर्च्छन जन्मसे पैदा होता है।।45।।
349. सूत्रक्रमापेक्षया आदौ भवमाद्यम्। औदारिकमित्यर्थ:। यद् गर्भजं यच्च संमूर्च्छनजं तत्सर्वमौदारिकं द्रष्टव्यम्।
349. सूत्रमें जिस क्रम से निर्देश किया तदनुसार यहाँ आद्यपद से औदारिक शरीर का ग्रहण करना चाहिए। जो शरीर गर्भजन्म से और संमूर्च्छन जन्म से उत्पन्न होता है वह सब औदारिक शरीर है यह इस सूत्र का तात्पर्य है।