ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 8
From जैनकोष
270. यद्येवं तदेव लक्षणमुच्यतां येन नानात्वमवसीयते इत्यत आह –
270. यदि ऐसा है तो वही लक्षण कहिए जिससे कर्म से आत्मा का भेद जाना जाता है, इसी बात को ध्यान में रखकर आगे का सूत्र कहते हैं –
उपयोगो लक्षणम्।।8।।
उपयोग जीव का लक्षण है।।8।।
271. उभयनिमित्तवशादुत्पद्यमानश्चैतन्यानुविधायी परिणाम उपयोग:। तेन बन्धं प्रत्येकत्वे सत्यप्यात्मा लक्ष्यते सुवर्णरजतयोर्बन्धं प्रत्येकत्वे सत्यपि वर्णादिभेदवत्।
271. जो अन्तरंग और बहिरंग दोनों प्रकार के निमित्तों से होता है और चैतन्य का अन्वयी है अर्थात् चैतन्य को छोड़कर अन्यत्र नहीं रहता वह परिणाम उपयोग कहलाता है। यद्यपि आत्मा बन्ध की अपेक्षा एक है तो भी इससे वह स्वतन्त्र जाना जाता है। जिस प्रकार स्वर्ण और चाँदी बन्ध की अपेक्षा एक हैं तो भी वर्णादिके भेदसे उनमें पार्थक्य रहता है उसी प्रकार प्रकृत में समझना चाहिए।