ग्रन्थ:सूत्रपाहुड़ देशभाषामय वचनिका समाप्ति
From जैनकोष
( छप्पय )
जिनवर की ध्वनि मेघध्वनिसम मुख तैं गरजे ।
गणधर के श्रुति भूमि वरषि अक्षर पद सरजै ॥
सकल तत्त्व परकास करै जगताप निवारै ।
हेय अहेय विधान लोक नीकै मन धारै ॥
विधि पुण्य पाप अरु लोक की मुनि श्रावक आचरण पुनि ।
करि स्व-पर भेद निर्णय सकल कर्म नाशि शिव लहत मुनि ॥१॥
दोहा
वर्द्धमान जिनके वचन वरतैं पञ्चमकाल ।
भव्य पाय शिवमग लहै नमूं तास गुणमाल ॥२॥
अर्थ - इति पण्डित जयचन्द्र छाबड़ा कृत देशभाषावचनिका के हिन्दी अनुवाद सहित श्रीकुन्दकुन्दस्वामि विरचित सूत्रपाहुड समाप्त ॥२॥