घर्मा
From जैनकोष
नरक की प्रथम रत्नप्रभा भूमि । इस पृथिवी में तेरह प्रस्तार है और उनमें क्रमश: निम्नलिखित तेरह ही इंद्रक बिल है― सीमंतक, नरक, रोहक, भ्रांत, उदभ्रांत, संभ्रांत, असंभ्रांत, विभ्रांत, त्रस्त, त्रसित, वक्रांत, अवक्रांत और विक्रांत । इन इंद्रक बिलों की चारों दिशाओं और विदिशाओं मे विद्यमान श्रेणिबद्ध बिल चार हजार चार सौ बीस तथा प्रकीर्णक बिल उंतीस लाख पंचानवें हजार पाँच सौ सड़सठ हैं । इस प्रकार कुल (इंद्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक) बिल तीस लाख हैं । हरिवंशपुराण - 4.46,हरिवंशपुराण - 4.71-77, 86-104 इनमें छ: लाख बिल संख्यात योजन और चौबीस लाख बिल असंख्यात योजन विस्तार से युक्त है । इंद्रक बिलों की मोटाई एक कोस श्रेणिबद्ध बिलों की 1 1/3 कोस तथा प्रकीर्णक बिलों की 2 1/3 कोस है । हरिवंशपुराण - 4.161,हरिवंशपुराण - 4.218 इस पृथिवी के उत्पत्ति स्थानों में उत्पन्न नारकी जन्मकाल में सात योजन सवा तीन कोस ऊपर आकाश में उछलकर पुन: नीचे गिरते हैं । इस पृथिवी से निकला सम्यक्त्वी जीव तीर्थंकर पद पा सकता है । असैनी पंचेंद्रिय जीव इसी पृथ्वी तक जाते हैं । महापुराण 10. 29, हरिवंशपुराण - 4.355,381