चारित्रपाहुड गाथा 22
From जैनकोष
आगे सागार संयमाचरण को कहते हैं -
दंसण वय सामाइय पोसह सचित्त रायभत्ते य ।
बंभारंभापरिग्गह अणुण उद्दिट्ठ देसविरदो य ।।२२।।
दर्शनं व्रतं सामायिकं प्रोषधं सचित्तं रात्रिभुक्तिश्च ।
ब्रह्म आरंभ: परिग्रह: अनुति: उद्दिष्ट देशविरतश्च ।।२२।।
देशव्रत सामायिक प्रोषध सचित निशिभुज त्यागमय ।
ब्रह्मचर्य आरम्भ ग्रन्थ तज अनुति अर उद्देश्य तज ।।२२।।
अर्थ - दर्शन, व्रत, सामायिक और प्रोषध आदि का नाम एकदेश है और नाम ऐसे कहे हैं, प्रोषधोपवास, सचित्तत्याग, रात्रिभुक्तित्याग, ब्रह्मचर्य, आरंभत्याग, परिग्रहत्याग, अनुतित्याग और उद्दिष्टत्याग, इसप्रकार ग्यारह प्रकार देशविरत है ।
भावार्थ - ये सागार संयमाचरण के ग्यारह स्थान हैं, इनको प्रतिमा भी कहते हैं ।।२२।।