चारित्रपाहुड गाथा 27
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि संयमचरण चारित्र में श्रावक धर्म को कहा, अब यतिधर्म को कहते हैं -
एवं सावयधम्मं संजमचरणं उदेसियं सयलं ।
सुद्धं संजमचरणं जइधम्मं णिक्कलं वोच्छे ।।२७।।
एवं श्रावकधर्मं संयमचरणं उपदेशितं सकलम् ।
शुद्धं संयमचरणं यतिधर्मं निष्फलं वक्ष्ये ।।२७।।
इस तरह संयमचरण श्रावक का कहा जो सकल है ।
अनगार का अब कहूँ संयमचरण जो कि निकल है ।।२७ ।।
अर्थ - एवं अर्थात् इसप्रकार से श्रावकधर्मस्वरूप संयमचरण तो कहा, यह कैसा है ? सकल अर्थात् कला सहित है, (यहाँ) एकदेश को कला कहते हैं । अब यतिधर्म के धर्मस्वरूप संयमचरण को कहूँगा, ऐसी आचार्य ने प्रतिज्ञा की है । यतिधर्म कैसा है ? शुद्ध है, निर्दोष है जिसमें पापाचरण का लेश नहीं है, निकल अर्थात् कला से नि:क्रांत है, सम्पूर्ण है, श्रावकधर्म की तरह एकदेश नहीं है ।।२७।।