चारित्रपाहुड गाथा 31
From जैनकोष
आगे इनको महाव्रत क्यों कहते हैं, वह बताते हैं -
साहंति जं महल्ला आयरियं जं महल्लपुव्वेहिं ।
जं च महल्लाणि तदो १महव्वया इत्तहे याइं ।।३१।।
साधयंति यन्महांत: आचरितं यत् महत्पूर्वै: ।
यच्च महन्ति तत: महाव्रतानि एतस्माद्धेतो: तानि ।।३१।।
ये महाव्रत निष्पाप हैं अर स्वयं से ही महान हैं ।
पूर्व में साधे महाजन आज भी हैं साधते ।।३१।।
अर्थ - महल्ला अर्थात् महन्त पुरुष जिनको साधते हैं, आचरण करते हैं और पहले भी जिनका महन्त पुरुषों ने आचरण किया है तथा ये व्रत आप ही महान् हैं, क्योंकि इनमें पाप का लेश भी नहीं है, इसप्रकार ये पाँच महाव्रत हैं ।
भावार्थ - जिनका बड़े पुरुष आचरण करें और आप निर्दोष हो वे ही बड़े कहलाते हैं, इसप्रकार इन पाँच व्रतों को महाव्रत संज्ञा है ।।३१।।