चारित्रपाहुड गाथा 44
From जैनकोष
आगे इष्ट चारित्र के कथन का संकोच करते हैं -
एवं संखेवेण य भणियं णाणेण वीयराएण ।
सम्मत्तसंजमासयदुण्हं पि उदेसियं चरणं ।।४४।।
एवं संक्षेपेण च भणितं ज्ञानेन वीतरागेण ।
सम्यक्त्वसंयमाश्रयद्वयोरपि उद्देशितं चरणम् ।।४४।।
इसतरह संक्षेप में सम्यक्चरण संयमचरण ।
का कथन कर जिनदेव ने उपकृत किये हैं भव्यजन ।।४४।।
अर्थ - एवं अर्थात् ऐसे पूर्वोक्त प्रकार संक्षेप से श्री वीतरागदेव ने ज्ञान के द्वारा कहे सम्यक्त्व और संयम - इन दोनों के आश्रय से चारित्र सम्यक्त्वचरणस्वरूप और संयमचरणस्वरूप दो प्रकार से उपदेश किया है, आचार्य ने चारित्र के कथन को संक्षेपरूप से कहकर संकोच किया है ।।४४।।