चारित्रपाहुड गाथा 9
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि जो इसप्रकार सम्यक्त्वाचरण चारित्र को अंगीकार करके संयमचरण चारित्र को अंगीकार करे तो शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त करता है -
सम्मत्तचरणसुद्धा संजमचरणस्स जइ व सुपसिद्धा ।
णाणी अमूढदिट्ठी अचिरे पावंति णिव्वाणं ।।९।।
सम्यक्त्वचरणशुद्धा: संयमचरणस्य यदि वा सुप्रसिद्धा: ।
ज्ञानिन: अमूढदृष्टय: अचिरं प्राप्नुवंति निर्वाणम् ।।९।।
सम्यक्चरण से शुद्ध अर संयमचरण से शुद्ध हों ।
वे समकिती सद्ज्ञानिजन निर्वाण पावें शीघ्र ही ।।९।।
अर्थ - जो ज्ञानी होते हुए अमूढदृष्टि होकर सम्यक्त्वाचरण चारित्र से शुद्ध होता है और जो संयमचरण चारित्र से सम्यक् प्रकार शुद्ध हो तो शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त होता है ।
भावार्थ - जो पदार्थो के यथार्थज्ञान से मूढदृष्टिरहित विशुद्ध सम्यग्दृष्टि होकर सम्यक्चारित्र स्वरूप संयम का आचरण करे तो शीघ्र ही मोक्ष को पावे, संयम अंगीकार करने पर स्वरूप के साधनरूप एकाग्र धर्मध्यान के बल से सातिशय अप्रमत्त गुणस्थानरूप हो श्रेणी चढ़ अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान उत्पन्न कर अघातिकर्म का नाश करके मोक्ष प्राप्त करता है, यह सम्यक्त्वचरण चारित्र का ही माहात्म्य है ।।९।।