जड़
From जैनकोष
जीव को कथंचित् जड़ कहना–
परमात्मप्रकाश/ मूल/1/53 जे णियबोहपरिट्ठियहँ जीवहँ तुट्टइ णाणु। इंदिय जणियउ जोइया तिं जिउ जडु वि वियाणु।53। =जिस अपेक्षा आत्मा ज्ञान में ठहरे हुए (अर्थात् समाधिस्थ) जीवों के इंद्रियजनित ज्ञान नाश को प्राप्त होता है, हे योगी ! उसी कारण जीव को जड़ भी जानो।
विशेष जानकारी के लिये देखें जीव - 1.3।